2024 Google Doodle Hamida Banu:- हमीदा बानो कौन थीं ? आज के इस लेख मैं हम जानेगे की हामिद बानो की जीवन यात्रा कैसे थी उन्हें अपने जीवन मैं क्या कठिनाई आयी और उसका जीवन के संघर्ष कैसा था आज के इस लेख मैं मैं आपको बताना चाहूंगा की एक महिला को समाज मैं किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और हमीदा बानो का जीवन मैं समाज का क्या असर पड़ा।
2024 Google Doodle Hamida Banu: हमीदा बानो कौन थीं ?
हमीदा बानो उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ा पुर मैं उनका जन्म हुआ था और शुरू से ही उनकी दिलचस्पी कुश्ती में थी। उस दौर में कुश्ती सिर्फ और सिर्फ पुरुष लोगो के खेल का मनोरंजन था महिलाये अखाड़े में उतरना एक दूर की ही बात थी जब हिंदा बनो ने अपने घर वालो से कुश्ती लडने की बात कही तो उन्हें ये मंजूर नहीं था। और बहुत बुरा भला कहा और कहा की ये सभी चीज़े पुरषो को शोभा देती है
तुम एक महिला हो और फिर हमीदा ने अपने घर वालो की नहीं सुनी और बिना कुछ कहे ही अलीगढ़ चली गयी यहाँ सलाम पहलवान से कुश्ती के दांव पेंच सीखे। फिर मुकाबले करने लगी।
सन 1987 में प्रकाशित महेश्वर दयाल अपनी पुस्तक में लिखते है की कुछ ही वर्षो में हमीदा बानो उत्तर प्रदेश से लेकर पंजाब तक मशहूर हो गई यह बिलकुल पुरुष पहलवानो की तरह लड़ा करती थी।
हमीदा बानो का प्रारंभिक जीवन ( Career)
हमीदा बानो को ‘अलीगढ़ की अमेज़न’ के नाम से भी जाना जाता है. हमीदा ने बचन से ही कुश्ती की अभ्यास किया करती थी और सन 1940 और 1950 के दशक से उन्होंने अपने करियर में 300 से भी ज्यादा प्रतियोगिताओं में जीत हासिल किया था।
जब तक हमीदा बानो ने सफलता हासिल नहीं की थी। तब तक एथलेटिक्स में महिलाओ की भागदारी आम तौर पर उतनी मायने नहीं रखती थी यानि सामाजिक दृष्टि से अच्छी नहीं मणि जाती थी सामाजिक मानदण्डो के दृष्टि से प्रोत्साहन नहीं किया जता था।
हमीदा बानो के समर्पण ने उन्हे कई सफलता पूर्ण प्रशंसाएँ दिलाईं। उह्नोने कई सारे पुरषो को खुले आम चुनौती भी दी की जो भी मुझे हराएगा उससे शादी कर लुंगी और कुछ पहलवानो ने तो शर्त स्वीकार भी कर लिया मगर हमीदा ने सभी को धूल चटा दी।
हमीदा बानो के नाम अंतरराष्ट्रीय खिताब भी दर्ज हैं। उन्होंने रूसी पहलवान वेरा चिस्टिलिन के खिलाफ कुश्ती मैच में दो मिनट से भी कम समय में जीत लिया था। मुकाबलों में जीत के बाद हमीदा बानो एक मशहूर नाम बन गईं। उनके प्रशिक्षण आहार को मीडिया द्वारा व्यापक रूप से कवर किया गया था।
हमीदा बानो को सम्मानित करने के लिए 4 मई की तारीख क्यों चुनी गई?
2024 Google Doodle Hamida Banu:-सन 1940 और 1950 के दशक के अपने करियर में, हमीदा बानो ने 300 से अधिक प्रतियोगिताएँ जीतीं थी। वह अक्सर पुरुष पहलवानों – या पहलवानों – को मुकाबलों के लिए चुनौती देती थी और वादा करती थी कि अगर वे जीतेंगे तो वह उनसे शादी कर लेगी। बानू उस समय एक ताकत बनकर उभरीं जब कुश्ती को अभी भी पुरुषों का खेल ही माना जाता था।
हमीदा बानो पर गूगल डूडल प्रकाशित करने के लिए 4 मई की तारीख इसलिए चुनी गई क्योंकि इसी दिन 1954 में उन्होंने प्रसिद्ध पहलवान बाबा पहलवान को चुनौती दी थी और हराया था। इसके बाद उन्होंने पेशेवर कुश्ती से संन्यास ले लिया।
जब लोगो ने पत्थर बरसाए
किताब ‘नेशन ऐट प्ले: ए हिस्ट्री ऑफ़ स्पोर्ट इन इंडिया’ में लिखते हैं, अपनी किताब में रोनोजॉय सेन लिखते है। उस दौर को समाज यह बात को समझने को राज़ी नहीं था की एक महिला पहलवान एक पुरुष को धूल चटा सकती है यह बात बर्दाश्त नहीं करने योग्य परुषो के लिए स्वीकार नहीं था।
इसलिए कई जगहों पर हमीदा को विरोध का सामना करना पड़ा था। हमीदा और रामचंद्र सालुंके के बीच पुणे में मुकाबला होना था। लेकिन रेसलिंग फेडरेशन अड़ गया और मुकाबला कैंसिल करना पड़ा और फिर जब एक ओर बार हमीदा बनो ने जब एक पुरुष पहलवान को हराया तो लोगो ने पत्थरबाजी शुरू कर दी और पुलिस ने किसी तरफ उनने सुरक्षित ले जाने में सफल रही।
नए नाम से लोकप्रियता, वजन ऊंचाई और आहार
2024 Google Doodle Hamida Banu:-हमीदा बानो उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ की निवासी थी। उन्हें उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ की निवासी प्राप्त हुई थी। और उन्होंने प्रशंसकों की संख्या अर्जित भी की, जिसकी उनके कई पुरुष समकक्ष कामना करते थे। बानो ने कई सारे मुकाबले लड़े और पुरुष विरोधियों पर हावी रहीं।
वह पटियाला के कुश्ती चैंपियन को धूल चटाने से लेकर बड़ौदा के महाराजा के साथ घनिष्ठ संबंध रखने वाले पहलवान छोटे गामा पहलवान को धूल चटाने तक रखती थी। बानो ने सबसे पहले यह सुनिश्चित किया की वह सभी चुनौतियों से पार कर जाएँगी।
रिपोर्ट्स के अनुसार, जब बानो अपने करियर के चरम पर थीं तब उनका व्यक्तित्व और उनका आहार अक्सर सुर्खियां भी बटोरता था।
बीबीसी के रिपोर्ट्स के अनुसार जब साल 1954 में हमीदा बानो बड़ौदा पहुंची तब तब वह बहुत प्रसिद्ध हो चुकी थी। उन्होंने 300 मुकाबले भी जीत चुकी थी।
आए दिन अखबारों में हमीदा बानो की हाइट, वेट, डाइट से जुड़ी खबरें छपती थीं, इनका वजन लगभग 108 KG था इनकी ऊंचाई 1.6 मीटर की थी। वह दूध की शौकीन थीं और रोजाना 5-6 लीटर दूध पीती थीं। 2.8 लीटर सूप, 1.5 लीटर फ्रूट जूस, और करीब-करीब 1 किलो मटन, बादाम, आधा किलो घी खाती थी।
मोरारजी देसाई से की शिकायत
महराष्ट्र सरकार ने हमीदा बनो पर एक तरह से बैन लगा दिया रोनोजॉय सेन अपनी पुस्तक में लिखते हैं की हमीदा ने महाराष्ट्र सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई से इसकी लिखित शिकायत भी की मोरारजी देसाई एक महिला होने के नाते उनके मुकाबले रद्द नहीं किया जा रहे, 2024 Google Doodle Hamida Banu बल्कि आयोजकों की शिकायत है कि बानो से लड़ने के लिए डम्मी कैंडिडेट उतारे जा रहे हैं।
पति ने हाथ-पैर तोड़ दिए
हमीदा बानो के Coach को यूरोप जाकर कुश्ती लड़ने वाला Idea पसंद नहीं आया दोनों ने शादी कर ली और फिर मुंबई के नजदीक कल्याण में डेरी बिज़नेस डाला। बहरहाल हमीदा का सपना था अभी भी वही था की वह यूरोप में जा करके कुश्ती लड़े परन्तु उनकी ये ज़िद बढ़ती ही चली गई।
वह अपने पति सलाम पहलवान को बार बार कहती और वह इस बात के लिए साफ़ इंकार कर देते हमीदा बानो की ज़िद न छूने के कारण उनके उन्हें बहुत मारा पीटा और इससे उनका हाथ टूट गया पैर में भी बहुत गंभीर चोट आती थी। जिसकी वजह से उन्हें कुछ सालो सटक लाठी के सहारे भी चलना पड़ा था। यह सब हमीदा बानो के पोते पोते फिरोज शेख के हवाले से लिखता है।
कुश्ती से मिली दुनियाभर में पहचान
हमीदा बानो को आज ही के दिन सन 1954 में केवल 1 मिनट और 34 सेकंड तक चले कुश्ती के मैच में जीत के लिए दुनिया भर में पहचान मिली। उन्होंने प्रसिद्ध पहलवान बाबा पहलवान को हराया। हारने के बाद उन्होंने पेशेवर कुश्ती से संन्यास ले लिया।
सन 1936 में, बानो ने बर्लिन ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया, और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कुश्ती में प्रतिस्पर्धा करने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करने के बावजूद, उन्होंने कड़ी लड़ाई लड़ी और अपने दृढ़ संकल्प और साहस से कई लोगों का दिल जीत लिया।
बानो की हुई गुमनामी में मौत
सब कुछ अच्छा चल रहा था ज़िंदगी में कुछ दुःख तकलीफ भी नहीं थी अब कुछ साल बाद सलाम पहलवान अलीगढ़ से लौट आए और हमीदा बानो सुखी से रहने लगी और अपने दूध का व्यापार करती रही कुछ ही दिनों बाद उन्हें सड़क किनारे खाने का सामान भी बेचा और कुछ सालो बाद ही सन 1986 में उनकी गुमनामी में मौत हो गई।
निष्कर्ष (Conclusion)
2024 Google Doodle Hamida Banu:-हमीदा बानो ने अपने जीवन में काफ़ी संघर्ष किए। उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी चाहे वो अपने परिवार से हो या समाज से हो उन्होंने अपने पहलवान बनने के सपने को साकार किया और काफी अच्छी सफलता भी प्राप्त की जिस दौर में वह जन्मी थी।
उस दौर में तो काफी पाबंदिया हुआ करती थी एक महिला के लिए यहाँ एक प्रेरणा दायक चेहरा उभर कर आई बाकी महिलाओ के लिए आप इनके जीवन से प्रेरित भी हो चुके होंगे काफी हद तक अगर आपको यह लेख पसंद आई हो तो कृपया करके हमारी मेहनत को सफल बनाये और इस Article को अपने जानने वालो के साथ साझा जरूर करियेगा।
जिससे उन्हें भी जीवन में प्रेरणा मिल सके एक अच्छे व्यक्तित्व का श्रोत उत्पन्न हो उनके जीवन में भी आपको यह लेख 2024 Google Doodle Hamida Banu केसा लगा Comment में जरूर बातये ताकि लिए ऐसे लेख और भी ला सके।
READ ASLO:- PREVIOUS ARTICLE CLICK
2024 Google Doodle Hamida Banu: FAQ
हमीदा बानो का जन्म कहा हुआ था।
उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ा पुर
हमीदा बानो के पति का नाम क्या था।
सलाम पहलवान